यूपी में चुनाव आखिरी दौर में पहुंच रहा है। तमाम वार-पलटवार के बीच भाजपा नेतृत्व 300 से ज्यादा सीटें जीतने को लेकर आश्वस्त है। अध्यक्ष जेपी नड्डा का मानना है कि लखीमपुर कांड और किसान आंदोलन से भाजपा को कोई नुकसान नहीं हुआ। नड्डा के अनुसार, अब वोटर अपने अधिकार के प्रति और सजग हुआ है। वह किसी के बहकावे में नहीं आता। उन्होंने तुष्टीकरण और जातिगत जनगणना से बचने के आरोपों को भी खारिज किया। इंदुशेखर पंचोली से विशेष बातचीत में नड्डा ने तमाम मसलों पर अपने विचार साझा किए। पेश हैं खास अंश…
यूपी में भाजपा 300 से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है। पहले गांव का प्रधान पूरे गांव के वोट दिलाता था, आज हर वोटर अपना हित देखता है। जाति आधारित वोट बैंक को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के वोट बैंक ने तोड़ दिया है। ये दावे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अमर उजाला से विस्तृत साक्षात्कार में किए। इस दौरान उन्होंने जातिगत जनगणना से लेकर सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाली जैसे मुद्दों पर भी भाजपा का रुख स्पष्ट किया। पढ़िए, उन्होंने देश के पांच राज्यों के चुनावों सहित विभिन्न मुद्दों पर और क्या कहा-
पंजाब में कितनी सीटें जीत पाते हैं, यह तो देखना होगा…लेकिन वोट शेयर बढ़ेगा
पांच राज्यों में से तीन में चुनाव हो चुके हैं। यूपी में दो और मणिपुर में एक चरण बाकी हैं। आपका आकलन क्या कहता है?
देखिए, हम पांच में से चार राज्यों में सरकार में रहे हैं। मेरा आकलन है कि हम उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बना रहे हैं। पंजाब में हम बेहतर करेंगे। हमें यहां पहली बार मौका मिला है, एक प्रकार से कहें तो हम छोटे साझीदार थे, लेकिन अब हमारा स्वरूप बढ़ा है। पहली बार हमें 65 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर मिला और कमल का निशान पंजाब में ले जा सके। पहले तो हम शहरों की सीमित 23 सीटों पर ही लड़ते थे। अब पंजाब में कितनी सीटें जीत पाते हैं, यह तो देखना होगा, लेकिन वोट शेयर निश्चित रूप से बढ़ेंगे। भाजपा को विस्तार करने का मौका मिलने वाला है। यानी हम अच्छा करेंगे।
अगर त्रिशंकु की स्थिति बनी तो क्या पुराने साथी अकाली दल से वापस दोस्ती संभव है?
अभी हमारी प्राथमिकता पार्टी का विस्तार करना है। वे अपनी मर्जी से गए थे, हम तो किसी को भेजते नहीं हैं। हमने हमेशा एनडीए का धर्म बहुत अच्छे से निभाया। पिछले चुनाव में हमें लोग सलाह देते थे कि आप अकेले लड़ेंगे तो बेहतर करेंगे, अकाली दल से समझौता तोड़ेंगे तो अच्छा रहेगा। तब भी हमने नुकसान सहना मंजूर किया। लोकसभा का चुनाव भी साथ लड़े। उन्होंने ही हमारा साथ छोड़ा।
यूपी में पांच चरण के बाद क्या तस्वीर बन रही है?
तस्वीर तो अच्छी बन रही है, भाजपा बहुत अच्छे तरीके से सरकार बना रही है।
हम 300 प्लस की बात करते हैं। हमें दिख रहा है। यूपी में पिछले तीन-चार चुनाव से विपक्ष के लोग किसी से जुड़कर ही चुनाव लड़ते रहे। एक बार कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी लड़ी, असफल रही, तो दूसरी बार बसपा के साथ लड़ी, जिसे ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ यानी ‘घातक गठजोड़’ कहा गया। उन्हें उसमें भी विफलता मिली। इस बार वे आरएलडी के साथ लड़ रहे हैं, जिसका प्रभाव क्षेत्र सीमित है। सीमित क्षेत्र में भी वे कुछ ही जिलों में हैं।
आपने देखा होगा…
कैसे हर चुनाव के बाद इन लोगों ने एक दूसरे पर दोषारोपण किया। मूल कारण है कि इन्हें समझ नहीं आ रहा है कि नेता और पार्टी के मिलने से ही वोटर भी नहीं मिल जाते। यह न्यूमेरिकल से ज्यादा केमिस्ट्री का खेल है। इनकी केमिस्ट्री ही नहीं बैठती। इसलिए हर चुनाव से पहले यह हौव्वा बनाया जाता है, ‘अरे बाप रे… देखो कांग्रेस और ये साथ आ गए।’ जैसे कांग्रेस अपनी पूरी विरासत लेकर सपा से मिल गई।
मैं चुनाव प्रभारी था…
जब सपा-बसपा के कॉम्बिनेशन की बात की गई, परिणाम आया तो 64 सीटें भाजपा जीती। उन्हें ध्यान ही नहीं आया कि चुनाव उनके हाथ में ही नहीं था। इसके बाद वे एकदूसरे पर दोषारोपण करते हैं कि इसने धोखा दिया या उसने धोखा दिया। इस बार भी वे जो करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें ध्यान ही नहीं आ रहा है कि वोटर की केमिस्ट्री तो मोदी जी और योगी जी के साथ मिल रही है। मेरा पालन-पोषण बिहार में हुआ, जो राजनीतिक रूप से सजग है। बचपन से चुनाव देखा है। पहले गांव का प्रधान क्षत्रप की तरह अपने पूरे गांव का वोट दिलाता था। कांग्रेस या जाति आधारित राजनीति कर रहे नेताओं के पास कोई संगठन नहीं था। वे प्रधानों के माध्यम से गांव का वोट लेते थे। दो दशक पहले से इसमें बदलाव आने लगा। मोदी जी के आने के बाद वोटर अपने अधिकार के प्रति और भी सजग हुआ। उसे कहां फायदा मिल रहा है, वो हमेशा सिर्फ यह देखता है।
वोटर को विश्वास है…
प्रदेश, देश और मैं, मोदी जी के हाथों में सुरक्षित हैं। यूपी में करीब ढाई लाख परिवार आयुष्मान भारत का गोल्डन कार्ड लेकर घूम रहे हैं। आपके लिए शायद महत्वपूर्ण न हो, लेकिन उसे दो वक्त का राशन मिलना बड़ी बात है, जो उसे मिल रहा है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर हो रहा है, सीधे जनधन खाते में पैसा आ रहा है। किसी गांव में 18 तो किसी में 50 पक्के मकान बन रहे हैं। फूस के घर में रहने वाले गरीब को लग रहा है कि उसकी बारी भी आएगी। इससे वोटर सशक्त महसूस करता है।
चुनाव में भाषा का स्तर काफी नीचे चला गया। क्या यह लोकतंत्र के हित में है?
सपा ने ये सब शुरू किया। उसी का जवाब दिया जाता है। हमने बहुत शालीनता रखी है और मुद्दों से
नहीं भटके। अखिलेश जी की कवरेज देखिए, वे मुद्दाविहीन राजनीति कर रहे हैं। हर बयान में जाति और धर्म विशेष से संवाद करने का प्रयास करते हैं। यूपी के विकास के बारे में उनके किसी बयान को सुना?
तुष्टीकरण तब होता है जब आप कोई काम किसी धर्म को देखते हुए करते हैं…
लाभार्थियों का वोट बैंक जाति आधारित वोट बैंक को खत्म कर रहा है?
बिलकुल, क्षत्रपों का जमाना गया। पहले लोग जाति के नाम पर आह्वान करते थे, अब नहीं सुनता कोई। वोटर की केमिस्ट्री अब मोदी जी से मिल रही है। गांव में भले वोटर कहता हो, ‘जैसा भैया बोलेंगे, वैसा करेंगे’, लेकिन भीतर से सजग भी है कि उसका अपना हित कहां है।
भाजपा परिवारवाद को मुद्दा बना रही है लेकिन अखिलेश और शिवपाल के अलावा परिवार से कोई चुनाव में नहीं है।
हम लोगों के मुद्दा बनाने पर ही शायद उन्होंने दो लोग उतारे। लेकिन इतिहास साक्षी है कि 50-50 लोग एक परिवार से राजनीति में रहे हैं। परिवारवाद का मतलब है कि जब भाई सांसद हो, पिता अध्यक्ष बनें और पिता जब बुजुर्ग हो जाएं तो बेटा अध्यक्ष बने। बहुत से परिवार के दो लोग चुनाव में हैं, लेकिन मैं पार्लियामेंट्री बोर्ड का सदस्य हूं, भाई सचिव और चाचा अध्यक्ष, तो यही परिवारवाद है।
पिछले 3 चुनाव में भाजपा ने पिछड़ों और अगड़ों की केमिस्ट्री विकसित की, इस बार क्या वह बिगड़ गई?
मैं नाम नहीं लूंगा लेकिन कुछ नेता जो यहां से गए उन्होंने अपना चुनाव क्षेत्र बदल लिया। यानी वे अपने घर में सुरक्षित नहीं थे। कई बार मैंने कहा है कि जब कोई व्यक्ति मोदी जी से जुड़ता है तो मजबूत होता है, लेकिन जब दूर होता है तो उसके पास उसका अपना कुछ भी नहीं रह जाता। किसी जाति के नेता भी मजबूत तभी समझते हैं जब वे मोदी जी के साथ हैं, जब अलग होते है तो उनके लोग भी साथ खड़े नहीं होते।
हम सबका विकास, साथ, विश्वास और प्रयास के उसूल पर चलते हैं।
बिहार में आपके समर्थन से बनी सरकार के मुख्यमंत्री ने जातिगत जनगणना की घोषणा की है। अखिलेश यादव ने यही कहा है। इससे भाजपा क्यों बचना चाह रही है?
भाजपा बचना नहीं चाह रही। इस विषय के कई कानूनी पक्ष हैं। चीजें कोर्ट में ले जाई जा सकती हैं। यह जरूरी है कि हम इसकी गहराई समझें। हमने सभी को एक विस्तृत नोट भेज कर इसे समझाने और विषय से जोड़ने का प्रयास किया। हम सबका विकास, साथ, विश्वास और प्रयास के उसूल पर चलते हैं। जातिगत जनगणना से हासिल क्या होगा? इसका तरीका क्या होगा? आज रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया क्या कहता है? उसके पास किस प्रकार से जुटाया डाटा है? उसके आधार पर हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं? इन सभी चीजों को जानना जरूरी है। गैलरी में बैठकर या भाषण में लोकप्रियता के लिए यह विषय उछाला जा रहा है। लेकिन प्रशासन के छोटे व महत्वपूर्ण पहलुओं को समझना अलग बात है। जो नेता हमारे साथ चल रहे हैं, उनकी ईमानदारी पर हम कुछ नहीं बोल रहे हैं। हम केवल उनके साथ विषय के प्रशासनिक पक्षों पर बात करना चाहते हैं।
क्या चुनाव 80 बनाम 20 के ध्रुवीकरण पर सिमट रहा है?
फिर से कहूंगा कि यह कहने वालों को केमिस्ट्री समझ नहीं आ रही है। इन लोगों ने अब तक इसी प्रकार राजनीति की और देश व प्रदेश को मुसीबत में डाला।
लेकिन मुख्यमंत्री खुद कहते हैं।
वो ठीक है, सब अपने तरीके से चीजों को रखते हैं। हमारा उसूल सबका साथ, सबका विकास है। मुख्यमंत्री भी इसमें विश्वास करते हैं।
क्या भाजपा अलग तरह का तुष्टीकरण कर रही है?
बिलकुल नहीं, कोई तुष्टीकरण नहीं है। सभी को न्याय और किसी का तुष्टीकरण नहीं, हम इसी सोच को लेकर चल रहे हैं। हम आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना, गरीब कल्याण या अन्य योजना में जाति या धर्म नहीं देखते। सभी से बात करते हैं। तुष्टीकरण तब होता है जब आप कोई काम किसी धर्म को देखते हुए करते हैं, जैसा समाजवादी पार्टी ने किया।
आज हम निवेश में यूपी को सातवें से नंबर दो पर लाए हैं। फिर सरकार बनेगी तो यूपी नंबर 1 होगा…
बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। यूपी में ज्यादा मुखर है। सेना तक में तीन साल से भर्ती नहीं हुई, भाजपा रैलियों में नारेबाजी हुई। प्रयागराज में बेरोजगारों पर लाठीचार्ज हुआ। पार्टी को नुकसान नहीं होगा?
कई समस्याएं कांग्रेस, सपा, बसपा ने विरासत में दीं। बेरोजगारी का सवाल है, तो बता दूं कि यूपी की आर्थिक गतिविधियां तीन-चार दशक से ठप हैं। शुगर फैक्टरियां, मिलें, निवेश बंद हुए। उद्यमी व निवेशक पलायन कर गए। आर्थिक विकास निगेटिव में पहुंच गया। आज हम निवेश में यूपी को सातवें से नंबर दो पर लाए हैं। फिर सरकार बनेगी, तो यूपी नंबर-1 होगा। यह सरकार के इकबाल, कानून व्यवस्था व गवर्नेंस के बिना नहीं होता। आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, तो रोजगार भी पैदा होंगे। कोई आदमी 10 हजार करोड़ का निवेश करता है, तो हजारों नौकरियां देता है। जब हम एक लाख करोड़ से अधिक निवेश लाएंगे, ‘वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट’ बढ़ाएंगे तो रोजगार आएगा। पहले बिहार व यूपी का नेतृत्व गर्व महसूस करता था कि हमारे लोग मुंबई, पंजाब जाकर काम करते हैं। सपा-बसपा सरकार में लोगों को पलायन करना पड़ा, आज स्थितियां सुधर रही हैं।
कोई भी आदमी अखिलेश के पास धरना देने नहीं जाएगा, क्योंकि उनके राज में सिर्फ तमंचा, कट्टा और बारूद के उद्योग चल सकते हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योगीजी के समय में ही होगा। उन्होंने 29 चीनी मिलें बंद करवाई, तो योगीजी ने 11 खुलवाईं। उन्हें 15-20 साल का समय दिया, योगीजी को और समय मिलेगा तो बेरोजगारी दूर होगी।
उत्तराखंड में तो 5 साल में तीन मुख्यमंत्री का प्रयोग हुआ, लेकिन यूपी में आप योगी के लिए दूसरा कार्यकाल मांग रहे हैं?
हमारे यहां हर दिन मूल्यांकन होता है, पूर्णता में सोचा जाता है। सच मानें, तो उत्तराखंड में दो ही बदलाव हुए। एक तो जो आया, उसे रिटेन नहीं कर पाए, उपचुनाव आ गए। तकनीकी वजहों से दूसरा बदलाव हुआ। हम उत्तराखंड में नई पीढ़ी को लाना चाहते थे। भाजपा ऐसे प्रयोग करती रहती है। लोगों को हम मौका देते हैं।
यूपी में योगी ही अगले सीएम होंगे?
हम उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, संसदीय बोर्ड अंतिम मुहर लगाता है। नतीजे आने पर बोर्ड बैठक एक औपचारिकता होती है, वहां चर्चा भी हो जाती है।
चुनाव में किसान का कोई मुद्दा आया ही नहीं…
क्या पहले और दूसरे चरण में किसान आंदोलन का असर दिखा? क्या जाट समुदाय को भाजपा पूरी तरह मना नहीं पाई?
बिलकुल भी नहीं। बल्कि चुनाव में किसान का मुद्दा आया ही नहीं। आप बताएं क्या आपने कहीं किसान का मुद्दा रिपोर्ट किया?
लखीमपुर कांड में मंत्री अजय मिश्रा को न हटाने का कोई नुकसान आपको दिखता है?
नहीं, बिल्कुल नहीं। हम इसे नुकसान या फायदे की दृष्टि से नहीं देखते। यह कानून, सरकार और व्यवस्था का मामला है। जो घटना घटी, दुखदायी थी। हमने एसआईटी बैठाई। वैज्ञानिक आधार पर केस में जांच हुई, चार्जशीट हुई, न्यायालय से कार्रवाई हो रही है। सरकार में मंत्री रहने से क्या कानून-व्यवस्था से कहीं समझौता हुआ? नहीं। कानून तय करेगा कि इस मामले में क्या होगा। यह घटना अच्छी नहीं है, लेकिन कोई किसी का पिता और मंत्री है, तो हमें देखना चाहिए कि कानून व्यवस्था न बिगड़े, न समझौता हो, वही हो रहा है।
आपने कहा कि पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का फर्क नहीं पड़ा, लेकिन आखिरी दो दौर में पीएम ने काशी में डेरा जमाया है। तो क्या वहां की भरपाई यहां से होगी?
पीएम होते हुए भी मोदी जी सांसद के तौर पर अपनी जिम्मेदारी से अलग नहीं हुए। वे काशी के 2014 के चुनाव में तीन रात रहे, 2017 और 2019 के चुनाव में भी काशीवासियों के साथ रहे। बाकी समय नियमित निरीक्षण, रात में घूमने निकलना, रुकना, यह सब उनकी कार्यशैली का हिस्सा है। भाजपा मजबूत है, काशी देख सकती है, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारी निभाने में लापरवाही नहीं करते। वे अपने मतदाताओं से संपर्क करते हैं, बात करते हैं। सभी को अपना प्रणाम पहुंचाने के लिए कहते हैं। इसे भरपाई करना नहीं कहा जा सकता।
ढाई करोड़ से अधिक किसानों को 36,000 करोड़ का लाभ दिया
आपका दावा है, किसानों के लिए सबसे अधिक काम मोदी-योगी ने किए हैं, लेकिन विपक्ष कुछ और ही दावे करता है?
हम विपक्ष की बातों पर ध्यान नहीं देते। हम वह कर रहे हैं, जो किसानों के लिए सबसे अधिक जरूरी है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत देश के 10 करोड़ से अधिक किसानों को अब तक 1.80 लाख करोड़ रुपये मिले हैं। यूपी में भी लगभग ढाई करोड़ से अधिक किसानों को करीब 36,000 करोड़ रुपये का लाभ दिया जा चुका है। यूपी में वर्षों से लंबित 17 सिंचाई परियोजनाएं पूरी हुई हैं। इनमें ऐसी भी परियोजनाएं हैं, जो पंडित नेहरू के समय से लंबित थी। 44,000 करोड़ रुपये की केन-बेतवा लिंक परियोजना से बुंदेलखंड में सिंचाई की सारी समस्या हल हो सकती है। यूपी में करीब 86 लाख किसानों के कर्ज माफ हुए हैं। अब हमने निर्णय किया है कि योगी सरकार के फिर बनने पर किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली मिलेगी। सपा-बसपा की सरकार के 10 साल में गन्ना किसानों को जितना भुगतान हुआ, उससे कहीं अधिक 1.48 लाख करोड़ रुपये का भुगतान योगी सरकार ने किया है। विपक्ष के पास कहने के लिए कुछ है क्या?
यूपी में किसानों का एक बड़ा मुद्दा छुट्टा पशुओं का है, आपके नेता भी मान रहे हैं । इसका नुकसान दिख रहा है? पीएम को भरोसा दिलाना पड़ा।
पीएम के वक्तव्य ने यूपी की जनता को विश्वास दिलाया है। वे अपनी बातों को अपने ढंग से रखते हैं, निश्चित ही इस पर काम होगा।
पुरानी पेंशन यूपी में बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस ने राजस्थान में इसे लागू कर दिया है। यूपी में क्या इस बारे में विचार करेंगे?
देखिए, हम राष्ट्रीय पार्टी हैं, चीजों को उसी दृष्टि से देखते हैं। बाकी पार्टियां क्षेत्रीय, पारिवारिक और वंशवादी हो चुकी हैं। उनकी सोच की हद अलग-थलग है, हमारी पूर्णता लिए हुए। हम विचारधारा आधारित पूरे देश में मौजूद पार्टी हैं, हमारा असर भी अखिल भारतीय स्तर का होता है। इस विषय में भी प्रशासनीक चीजों को समझने की जरूरत है। दुर्भाग्य से कांग्रेस ने पिछले 3 दशक में वोट की खातिर हर चीज में समझौता किया। उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं बची। उसकी कर्ज माफी योजना मजाक बन चुकी है। वे काठ की हांडियां चढ़ाते हैं, न कोई विश्वास करता है, न वे कोई निर्णायक बात कहते हैं। वे पहले कहते थे कि हमें टीका खरीदने दो, हम विदेश से खरीद लाएंगे। बाद में बोलने लगे कि हमें आप ही दे दो। फिर कहने लगे कि मुफ्त दे दो। क्या है इनकी विश्वसनीयता? कोरोना की दूसरी लहर बड़ा संकट था, टीकाकरण की चुनौती थी। उन्होंने टीके का भी मजाक बनाया, प्रदेश व लोगों को गुमराह किया, हल्कापन दिखाया। आज हम गर्व से कहते हैं कि मोदी जी ने देश को बचा लिया। टीकों की 179 करोड़ डोज देश में और 29 करोड़ यूपी में लगाई गई।
विस्तार
यूपी में भाजपा 300 से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है। पहले गांव का प्रधान पूरे गांव के वोट दिलाता था, आज हर वोटर अपना हित देखता है। जाति आधारित वोट बैंक को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के वोट बैंक ने तोड़ दिया है। ये दावे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अमर उजाला से विस्तृत साक्षात्कार में किए। इस दौरान उन्होंने जातिगत जनगणना से लेकर सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाली जैसे मुद्दों पर भी भाजपा का रुख स्पष्ट किया। पढ़िए, उन्होंने देश के पांच राज्यों के चुनावों सहित विभिन्न मुद्दों पर और क्या कहा-
पंजाब में कितनी सीटें जीत पाते हैं, यह तो देखना होगा…लेकिन वोट शेयर बढ़ेगा
पांच राज्यों में से तीन में चुनाव हो चुके हैं। यूपी में दो और मणिपुर में एक चरण बाकी हैं। आपका आकलन क्या कहता है?
देखिए, हम पांच में से चार राज्यों में सरकार में रहे हैं। मेरा आकलन है कि हम उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बना रहे हैं। पंजाब में हम बेहतर करेंगे। हमें यहां पहली बार मौका मिला है, एक प्रकार से कहें तो हम छोटे साझीदार थे, लेकिन अब हमारा स्वरूप बढ़ा है। पहली बार हमें 65 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर मिला और कमल का निशान पंजाब में ले जा सके। पहले तो हम शहरों की सीमित 23 सीटों पर ही लड़ते थे। अब पंजाब में कितनी सीटें जीत पाते हैं, यह तो देखना होगा, लेकिन वोट शेयर निश्चित रूप से बढ़ेंगे। भाजपा को विस्तार करने का मौका मिलने वाला है। यानी हम अच्छा करेंगे।
अगर त्रिशंकु की स्थिति बनी तो क्या पुराने साथी अकाली दल से वापस दोस्ती संभव है?
अभी हमारी प्राथमिकता पार्टी का विस्तार करना है। वे अपनी मर्जी से गए थे, हम तो किसी को भेजते नहीं हैं। हमने हमेशा एनडीए का धर्म बहुत अच्छे से निभाया। पिछले चुनाव में हमें लोग सलाह देते थे कि आप अकेले लड़ेंगे तो बेहतर करेंगे, अकाली दल से समझौता तोड़ेंगे तो अच्छा रहेगा। तब भी हमने नुकसान सहना मंजूर किया। लोकसभा का चुनाव भी साथ लड़े। उन्होंने ही हमारा साथ छोड़ा।
यूपी में पांच चरण के बाद क्या तस्वीर बन रही है?
तस्वीर तो अच्छी बन रही है, भाजपा बहुत अच्छे तरीके से सरकार बना रही है।
हम 300 प्लस की बात करते हैं। हमें दिख रहा है। यूपी में पिछले तीन-चार चुनाव से विपक्ष के लोग किसी से जुड़कर ही चुनाव लड़ते रहे। एक बार कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी लड़ी, असफल रही, तो दूसरी बार बसपा के साथ लड़ी, जिसे ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ यानी ‘घातक गठजोड़’ कहा गया। उन्हें उसमें भी विफलता मिली। इस बार वे आरएलडी के साथ लड़ रहे हैं, जिसका प्रभाव क्षेत्र सीमित है। सीमित क्षेत्र में भी वे कुछ ही जिलों में हैं।