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सार
यूपी भाजपा के एक नेता ने कम मतदान को निराशाजनक बताया, लेकिन यह दावा किया कि उनकी पार्टी 300 से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बना रही है। नेता के मुताबिक जब मतदाताओं को सरकार बदलनी होती है, तो वे बढ़-चढ़कर मतदान करते हैं, जबकि यदि वे सरकार से संतुष्ट होते हैं तो अपेक्षाकृत सामान्य मतदान होता है…
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए चार चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। हर चरण में इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान का ट्रेंड दिखाई पड़ रहा है। कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब में भारी सियासत के बाद भी इस बार पिछले तीन विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान हुआ है। उत्तराखंड में भी पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ कम मतदान हुआ है। यह ट्रेंड क्या कहता है और इसका किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है?
पहले चरण से ही दिखा कम मतदान का ट्रेंड
उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 सीटों के लिए 10 फरवरी को वोट डाले गए थे। नोएडा, गाजियाबाद, अलीगढ़, मथुरा और आगरा की बेल्ट में इस चरण में 62.08 फीसदी मतदान हुआ। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में इन सीटों पर 63.47 फीसदी मतदान हुआ था। इस चरण में कैराना में रिकॉर्ड 75.12 फीसदी, शामली में 69.42 फीसदी और मेरठ में 63.27 फीसदी मतदान हुआ तो गाजियाबाद जैसे इलाके में काफी कम (लगभग 54.19 फीसदी) मतदान हुआ। साहिबाबाद में केवल 45 फीसदी मतदान हुआ।
दूसरे चरण में नौ जिलों की 55 सीटों के लिए 14 फरवरी को मतदान हुआ। इस चरण में लगभग 62.82 फीसदी मतदान हुआ। 2017 के 65.53 फीसदी के मुकाबले यह मतदान 2.73 फीसदी से भी ज्यादा कम हुआ है। तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 सीटों पर मतदान हुआ। इन सीटों पर 61.61 फीसदी मतदान हुआ। मतदान का यह आंकड़ा भी 2017 के चुनाव में हुए मतदान 62.21 फीसदी से कम है। हालांकि, इसी चरण में ललितपुर में 69.66, एटा में 65.78 फीसदी, मैनपुरी में 63.61 फीसदी और हाथरस में 63.15 फीसदी मतदान हुआ है।
चौथे चरण में नौ जिलों की 59 सीटों पर 23 फरवरी को मतदान हुआ। इन सीटों पर 61.65 फीसदी मतदान हुआ। लेकिन यह मतदान पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ कम है जब इन्हीं सीटों पर 62.55 फीसदी मतदान हुआ था। इस चरण में लखनऊ में 61 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछले चुनाव के 58.45 फीसदी से कुछ ज्यादा है। लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई हिंसा की घटना के बाद भी 67.15 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछले चुनाव से कुछ कम है।
कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी इसी तरह का ट्रेंड देखने में मिल रहा है जो चिंताजनक है। पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में करीब 72 फीसदी मतदान हुआ है। यह पिछले तीन विधानसभा चुनाव में सबसे कम है। 2017 में पंजाब में 77.40 फीसदी, 2007 में 75.45 और 2012 में 78.20 फीसदी रहा था।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भी 2017 के चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई है। इस बार यहां 65.37 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार की तुलना में 0.19 फीसदी कम है। 2017 में उत्तराखंड में 65.36 फीसदी, 2012 में 66.17 फीसदी और 2007 में 59.45 फीसदी मतदान हुआ था।
अपनी-अपनी जीत का दावा
सभी राजनीतिक दल इस वोटिंग ट्रेंड को अपने अनुसार बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता के अनुसार इस कम मतदान के बीच भी एक बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पश्चिमी यूपी के उन इलाकों में जहां मुस्लिम और यादव मतदाता बहुतायत संख्या में रहते हैं, वहां मतदान ज्यादा हुआ है। इसका साफ अर्थ है कि ये मतदाता सरकार बदलने के लिए अपनी ताकत का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वहीं भाजपा का मतदाता बाहर नहीं निकल रहा है। वह किसी कारण से दूसरे दलों को वोट नहीं देना चाहता, लेकिन वह भाजपा की नीतियों के कारण निरुत्साहित है और इसलिए मतदान के लिए बाहर नहीं आ रहा है।
योगी के विरुद्ध लहर नहीं
वहीं, यूपी भाजपा के एक नेता ने कम मतदान को निराशाजनक बताया, लेकिन यह दावा किया कि उनकी पार्टी 300 से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बना रही है। नेता के मुताबिक जब मतदाताओं को सरकार बदलनी होती है, तो वे बढ़-चढ़कर मतदान करते हैं, जबकि यदि वे सरकार से संतुष्ट होते हैं तो अपेक्षाकृत सामान्य मतदान होता है। इस बार यही हो रहा है। नेता ने दावा किया कि योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध किसी प्रकार की सत्ता विरोधी लहर नहीं है, जिस कारण मतदान कम दिख रहा है। लेकिन, उनकी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को पूरी तरह उत्साहित कर हर एक वोट डलवाने के लिए प्रेरित कर रही है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए चार चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। हर चरण में इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान का ट्रेंड दिखाई पड़ रहा है। कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब में भारी सियासत के बाद भी इस बार पिछले तीन विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान हुआ है। उत्तराखंड में भी पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ कम मतदान हुआ है। यह ट्रेंड क्या कहता है और इसका किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है?
पहले चरण से ही दिखा कम मतदान का ट्रेंड
उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 सीटों के लिए 10 फरवरी को वोट डाले गए थे। नोएडा, गाजियाबाद, अलीगढ़, मथुरा और आगरा की बेल्ट में इस चरण में 62.08 फीसदी मतदान हुआ। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में इन सीटों पर 63.47 फीसदी मतदान हुआ था। इस चरण में कैराना में रिकॉर्ड 75.12 फीसदी, शामली में 69.42 फीसदी और मेरठ में 63.27 फीसदी मतदान हुआ तो गाजियाबाद जैसे इलाके में काफी कम (लगभग 54.19 फीसदी) मतदान हुआ। साहिबाबाद में केवल 45 फीसदी मतदान हुआ।
दूसरे चरण में नौ जिलों की 55 सीटों के लिए 14 फरवरी को मतदान हुआ। इस चरण में लगभग 62.82 फीसदी मतदान हुआ। 2017 के 65.53 फीसदी के मुकाबले यह मतदान 2.73 फीसदी से भी ज्यादा कम हुआ है। तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 सीटों पर मतदान हुआ। इन सीटों पर 61.61 फीसदी मतदान हुआ। मतदान का यह आंकड़ा भी 2017 के चुनाव में हुए मतदान 62.21 फीसदी से कम है। हालांकि, इसी चरण में ललितपुर में 69.66, एटा में 65.78 फीसदी, मैनपुरी में 63.61 फीसदी और हाथरस में 63.15 फीसदी मतदान हुआ है।
चौथे चरण में नौ जिलों की 59 सीटों पर 23 फरवरी को मतदान हुआ। इन सीटों पर 61.65 फीसदी मतदान हुआ। लेकिन यह मतदान पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ कम है जब इन्हीं सीटों पर 62.55 फीसदी मतदान हुआ था। इस चरण में लखनऊ में 61 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछले चुनाव के 58.45 फीसदी से कुछ ज्यादा है। लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुई हिंसा की घटना के बाद भी 67.15 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछले चुनाव से कुछ कम है।
कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी इसी तरह का ट्रेंड देखने में मिल रहा है जो चिंताजनक है। पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में करीब 72 फीसदी मतदान हुआ है। यह पिछले तीन विधानसभा चुनाव में सबसे कम है। 2017 में पंजाब में 77.40 फीसदी, 2007 में 75.45 और 2012 में 78.20 फीसदी रहा था।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भी 2017 के चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई है। इस बार यहां 65.37 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार की तुलना में 0.19 फीसदी कम है। 2017 में उत्तराखंड में 65.36 फीसदी, 2012 में 66.17 फीसदी और 2007 में 59.45 फीसदी मतदान हुआ था।
अपनी-अपनी जीत का दावा
सभी राजनीतिक दल इस वोटिंग ट्रेंड को अपने अनुसार बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता के अनुसार इस कम मतदान के बीच भी एक बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पश्चिमी यूपी के उन इलाकों में जहां मुस्लिम और यादव मतदाता बहुतायत संख्या में रहते हैं, वहां मतदान ज्यादा हुआ है। इसका साफ अर्थ है कि ये मतदाता सरकार बदलने के लिए अपनी ताकत का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वहीं भाजपा का मतदाता बाहर नहीं निकल रहा है। वह किसी कारण से दूसरे दलों को वोट नहीं देना चाहता, लेकिन वह भाजपा की नीतियों के कारण निरुत्साहित है और इसलिए मतदान के लिए बाहर नहीं आ रहा है।
योगी के विरुद्ध लहर नहीं
वहीं, यूपी भाजपा के एक नेता ने कम मतदान को निराशाजनक बताया, लेकिन यह दावा किया कि उनकी पार्टी 300 से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बना रही है। नेता के मुताबिक जब मतदाताओं को सरकार बदलनी होती है, तो वे बढ़-चढ़कर मतदान करते हैं, जबकि यदि वे सरकार से संतुष्ट होते हैं तो अपेक्षाकृत सामान्य मतदान होता है। इस बार यही हो रहा है। नेता ने दावा किया कि योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध किसी प्रकार की सत्ता विरोधी लहर नहीं है, जिस कारण मतदान कम दिख रहा है। लेकिन, उनकी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को पूरी तरह उत्साहित कर हर एक वोट डलवाने के लिए प्रेरित कर रही है।
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