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सार
चर्चा यह भी है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अपना वतन छोड़ अमेरिका के प्रभाव वाले किसी देश में पनाह ली है।
क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादीमिर जेलेंस्की ने अपना मुल्क छोड़ दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरीके के कयास लगाए जा रहे हैं कि जेलेन्स्की अमेरिकी प्रभुत्व वाले किसी यूरोपियन मुल्क या किसी ऐसी जगह पर है जहां से वह लगातार वीडियो और संदेश भेज रहे हैं। विदेशी मामलों के जानकारों का भी यही अनुमान है कि जिस तरीके से मैसेज और वीडियोज व्लादिमार जेलेंस्की की ओर से भेजे जा रहे हैं वह यही इशारा कर रहा है यूक्रेन के राष्ट्रपति किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच गए हैं।
हालांकि खुद जेलेंस्की ने अपने एक संदेश के जरिए इन अटकलों का खंडन किया है और कहा है कि वह देश में ही हैं।लेकिन खुफिया तंत्र से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूक्रेन में रहकर राष्ट्रपति जेलेंस्की के लिए इस तरह वीडियो अपलोड करते रहना मुमकिन नहीं है क्योंकि इलेक्ट्रानिक सर्विलांस में माहिर रूसी खुफिया एजेंसियों के लिए उन तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा।इसलिए बहुत संभव है कि जेलेंस्की अमेरिकी सुरक्षा तंत्र की छतरी में कहीं दूर से अपना काम कर रहे होंगे।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इस इस बात का अंदेशा जताया था कि आक्रमण के दौरान उनके ऊपर और परिवार के ऊपर रूसी सेना टारगेट करके हमला कर सकती है। उनके संदेशों के साथ ही दुनिया के तमाम देशों की खुफिया एजेंसी न सिर्फ एजेंसियां अलर्ट हुई बल्कि जानकार यह तक बताते हैं कि यूक्रेन के राष्ट्रपति को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा दिया गया है। हालांकि विदेशों में अपने देश की ओर से खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अमूमन ऐसी दशा में होता यही है कि जिस देश पर हमला होता है उसका राष्ट्राध्यक्ष सामने नहीं आता है। बीते कुछ दिनों में दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में हुए हमले इस बात की गवाही भी देते हैं। वह कहते हैं कि अगर कोई राष्ट्राध्यक्ष ऐसे हालातों में सामने आकर कोई वीडियो या कोई अपील करता है तो उसकी न सिर्फ लोकेशन बल्कि उसकी पूरी टीम को दुश्मन देश ट्रेस कर सकता है।
विदेशों में खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि जिस तरीके से अमेरिका और यूरोपीय देशों यूक्रेन को सैन्य शक्तियों के अलावा अन्य चीजों से सपोर्ट किया है उसमें यह संभव है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचने में इन देशों ने मदद की हो। विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसे युद्ध के दौरान अपनी सेना का और अपने देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए समय-समय पर राष्ट्र अध्यक्षों के वीडियोज और मैसेज तो अलग-अलग सोशल मीडिया के माध्यम से या टीवी चैनल पर वीडियोज के माध्यम से आते रहते हैं लेकिन उनकी लोकेशन और उनका कोई भी वीडियो बहुत बड़े बैकग्राउंड के साथ कभी नहीं आता है। उक्त अधिकारी का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों के सहयोग से ऐसा संभव हो सकता है।
खुफिया एजेंसियों से पूर्व अधिकारी और विदेशी मामलों के जानकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब रूस ने यूक्रेन पर हमले की भूमिका बनानी शुरू की थी तभी से अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों कुछ देशों ने रूस में पहले हथियारों की सप्लाई भी की थी। जानकार बताते हैं कि अमेरिका ने यूक्रेन में कई सौ करोड़ डॉलर की कीमत के हथियारों का पूरा जखीरा पहले ही भेज दिया था। यही वजह है कि यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष की रूस के ताबड़तोड़ हमले के बाद भी मजबूत रवैया बना हुआ है। रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है जब तक आप के ऊपर किसी ताकतवर देश के खिलाफ लड़ाई में दूसरा मजबूत दे साथ में नहीं होता है तब तक मानसिक तौर पर ना मजबूती दे पाती हो ना ही युद्ध झेलने वाले देश के राष्ट्राध्यक्ष का आक्रामक रवैया। लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति के आक्रामक रवैये से संदेश स्पष्ट है कि अमेरिका की सरपरस्ती और मिले बड़े हथियारों के जखीरे से मनोबल भी मजबूत है और सुरक्षित होने की वजह से रूस को ललकारने की टोन भी मजबूत है।
विस्तार
क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादीमिर जेलेंस्की ने अपना मुल्क छोड़ दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरीके के कयास लगाए जा रहे हैं कि जेलेन्स्की अमेरिकी प्रभुत्व वाले किसी यूरोपियन मुल्क या किसी ऐसी जगह पर है जहां से वह लगातार वीडियो और संदेश भेज रहे हैं। विदेशी मामलों के जानकारों का भी यही अनुमान है कि जिस तरीके से मैसेज और वीडियोज व्लादिमार जेलेंस्की की ओर से भेजे जा रहे हैं वह यही इशारा कर रहा है यूक्रेन के राष्ट्रपति किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच गए हैं।
हालांकि खुद जेलेंस्की ने अपने एक संदेश के जरिए इन अटकलों का खंडन किया है और कहा है कि वह देश में ही हैं।लेकिन खुफिया तंत्र से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूक्रेन में रहकर राष्ट्रपति जेलेंस्की के लिए इस तरह वीडियो अपलोड करते रहना मुमकिन नहीं है क्योंकि इलेक्ट्रानिक सर्विलांस में माहिर रूसी खुफिया एजेंसियों के लिए उन तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा।इसलिए बहुत संभव है कि जेलेंस्की अमेरिकी सुरक्षा तंत्र की छतरी में कहीं दूर से अपना काम कर रहे होंगे।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इस इस बात का अंदेशा जताया था कि आक्रमण के दौरान उनके ऊपर और परिवार के ऊपर रूसी सेना टारगेट करके हमला कर सकती है। उनके संदेशों के साथ ही दुनिया के तमाम देशों की खुफिया एजेंसी न सिर्फ एजेंसियां अलर्ट हुई बल्कि जानकार यह तक बताते हैं कि यूक्रेन के राष्ट्रपति को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा दिया गया है। हालांकि विदेशों में अपने देश की ओर से खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अमूमन ऐसी दशा में होता यही है कि जिस देश पर हमला होता है उसका राष्ट्राध्यक्ष सामने नहीं आता है। बीते कुछ दिनों में दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में हुए हमले इस बात की गवाही भी देते हैं। वह कहते हैं कि अगर कोई राष्ट्राध्यक्ष ऐसे हालातों में सामने आकर कोई वीडियो या कोई अपील करता है तो उसकी न सिर्फ लोकेशन बल्कि उसकी पूरी टीम को दुश्मन देश ट्रेस कर सकता है।
विदेशों में खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि जिस तरीके से अमेरिका और यूरोपीय देशों यूक्रेन को सैन्य शक्तियों के अलावा अन्य चीजों से सपोर्ट किया है उसमें यह संभव है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचने में इन देशों ने मदद की हो। विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसे युद्ध के दौरान अपनी सेना का और अपने देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए समय-समय पर राष्ट्र अध्यक्षों के वीडियोज और मैसेज तो अलग-अलग सोशल मीडिया के माध्यम से या टीवी चैनल पर वीडियोज के माध्यम से आते रहते हैं लेकिन उनकी लोकेशन और उनका कोई भी वीडियो बहुत बड़े बैकग्राउंड के साथ कभी नहीं आता है। उक्त अधिकारी का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों के सहयोग से ऐसा संभव हो सकता है।
खुफिया एजेंसियों से पूर्व अधिकारी और विदेशी मामलों के जानकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब रूस ने यूक्रेन पर हमले की भूमिका बनानी शुरू की थी तभी से अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों कुछ देशों ने रूस में पहले हथियारों की सप्लाई भी की थी। जानकार बताते हैं कि अमेरिका ने यूक्रेन में कई सौ करोड़ डॉलर की कीमत के हथियारों का पूरा जखीरा पहले ही भेज दिया था। यही वजह है कि यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष की रूस के ताबड़तोड़ हमले के बाद भी मजबूत रवैया बना हुआ है। रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है जब तक आप के ऊपर किसी ताकतवर देश के खिलाफ लड़ाई में दूसरा मजबूत दे साथ में नहीं होता है तब तक मानसिक तौर पर ना मजबूती दे पाती हो ना ही युद्ध झेलने वाले देश के राष्ट्राध्यक्ष का आक्रामक रवैया। लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति के आक्रामक रवैये से संदेश स्पष्ट है कि अमेरिका की सरपरस्ती और मिले बड़े हथियारों के जखीरे से मनोबल भी मजबूत है और सुरक्षित होने की वजह से रूस को ललकारने की टोन भी मजबूत है।
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