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Sarita Of Ludhiana Shares Her Experiences Related To Ukraine War – यूक्रेन संकट: 26 फरवरी की टिकट बुक की, 24 को ही रूस ने कर दिया हमला, सरिता ने सुनाई आपबीती

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विकास मल्होत्रा, संवाद न्यूज एजेंसी, लुधियाना (पंजाब)
Published by: ajay kumar
Updated Mon, 07 Mar 2022 12:00 AM IST

सार

रूसी सेना के भय से बस चालक ने उन्हें बीच रास्ते में ही उतार दिया। हंगरी सीमा 60 किलोमीटर दूर होने के चलते स्थानीय लोगों की सलाह पर वह वहां से 20 किमी दूर रोमानिया सीमा की तरफ बस से गए। चालक ने 10 किलोमीटर दूर जाकर आगे खतरा बता बस वहीं रोक दी।

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बमबारी और गोलियों की आवाज से लगातार डर लगता था। एक बार तो हमने घर पहुंचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। न तो कुछ खाने को था न ही पीने को। ऊपर से ठंड भीषण थी। कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद हंगरी के बजाय रोमानिया पहुंचे और वहां से फ्लाइट मिली और फिर मुंबई पहुंची और फिर लुधियाना आई। यह आपबीती सरिता ने बयां की।

मुंबई से चंडीगढ़ पहुंचने पर पिता रमाशंकर खुद लेने पहुंचे। सरिता का कहना है कि पिता की गोद में सिर रखने के बाद उसने चैन की सांस ली और तसल्ली हुई कि वह घर पहुंच चुकी है। सरिता ने रुस-यूक्रेन युद्ध के चलते संकट में बिताए आठ दिन के कड़वे अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध की संभावनाओं के बीच 26 फरवरी की फ्लाइट में सीट बुक करवाकर भारत लौटने की तैयारी कर ली थी। मगर 24 फरवरी को ही रूसी सेना ने हमला बोल दिया। हमले के बाद उसने दूसरे विद्यार्थियों संग पहले कुछ दिन शेल्टर में बिताए फिर 20 विद्यार्थियों के साथ बस में सवार होकर हंगरी सीमा की तरफ रवाना हुईं। 

रूसी सेना के भय से बस चालक ने उन्हें बीच रास्ते में ही उतार दिया। हंगरी सीमा 60 किलोमीटर दूर होने के चलते स्थानीय लोगों की सलाह पर वह वहां से 20 किमी दूर रोमानिया सीमा की तरफ बस से गए। चालक ने 10 किलोमीटर दूर जाकर आगे खतरा बता बस वहीं रोक दी। उस समय वहां के रहने वाले डॉ. मशरूफ मसीहा बनकर सामने आए। डॉ. मशरूफ ने काफी मदद की। रोमानिया पहुंचने पर भारतीय दूतावास की तरफ से उन्हें सुविधाएं मिलीं। वहां उन्हें चैन की सांस व भर पेट भोजन मिला। 

दो दिन तक शेल्टर में रुकने के बाद उन्हें भारत सरकार ने फ्लाइट से मुंबई भेजा। सरिता ने बताया कि मुंबई एयरपोर्ट पर केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, तामिलनाडु के साथ हर राज्य के हेल्प डेस्क मिले लेकिन पंजाब सरकार का कोई हेल्प डेस्क दिखाई नहीं दिया। पंजाब सरकार की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया तो किसी ने रिसीव नहीं की। पिता रमाशंकर मिश्र ने प्रधानमंत्री मोदी और रोमानिया में भारत के राजदूत का आभार व्यक्त किया।

विस्तार

बमबारी और गोलियों की आवाज से लगातार डर लगता था। एक बार तो हमने घर पहुंचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। न तो कुछ खाने को था न ही पीने को। ऊपर से ठंड भीषण थी। कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद हंगरी के बजाय रोमानिया पहुंचे और वहां से फ्लाइट मिली और फिर मुंबई पहुंची और फिर लुधियाना आई। यह आपबीती सरिता ने बयां की।

मुंबई से चंडीगढ़ पहुंचने पर पिता रमाशंकर खुद लेने पहुंचे। सरिता का कहना है कि पिता की गोद में सिर रखने के बाद उसने चैन की सांस ली और तसल्ली हुई कि वह घर पहुंच चुकी है। सरिता ने रुस-यूक्रेन युद्ध के चलते संकट में बिताए आठ दिन के कड़वे अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध की संभावनाओं के बीच 26 फरवरी की फ्लाइट में सीट बुक करवाकर भारत लौटने की तैयारी कर ली थी। मगर 24 फरवरी को ही रूसी सेना ने हमला बोल दिया। हमले के बाद उसने दूसरे विद्यार्थियों संग पहले कुछ दिन शेल्टर में बिताए फिर 20 विद्यार्थियों के साथ बस में सवार होकर हंगरी सीमा की तरफ रवाना हुईं। 

रूसी सेना के भय से बस चालक ने उन्हें बीच रास्ते में ही उतार दिया। हंगरी सीमा 60 किलोमीटर दूर होने के चलते स्थानीय लोगों की सलाह पर वह वहां से 20 किमी दूर रोमानिया सीमा की तरफ बस से गए। चालक ने 10 किलोमीटर दूर जाकर आगे खतरा बता बस वहीं रोक दी। उस समय वहां के रहने वाले डॉ. मशरूफ मसीहा बनकर सामने आए। डॉ. मशरूफ ने काफी मदद की। रोमानिया पहुंचने पर भारतीय दूतावास की तरफ से उन्हें सुविधाएं मिलीं। वहां उन्हें चैन की सांस व भर पेट भोजन मिला। 

दो दिन तक शेल्टर में रुकने के बाद उन्हें भारत सरकार ने फ्लाइट से मुंबई भेजा। सरिता ने बताया कि मुंबई एयरपोर्ट पर केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, तामिलनाडु के साथ हर राज्य के हेल्प डेस्क मिले लेकिन पंजाब सरकार का कोई हेल्प डेस्क दिखाई नहीं दिया। पंजाब सरकार की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया तो किसी ने रिसीव नहीं की। पिता रमाशंकर मिश्र ने प्रधानमंत्री मोदी और रोमानिया में भारत के राजदूत का आभार व्यक्त किया।

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