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Up Elections 2022 5th Phase Of Election Know About The Details Of Samajwadi Party Bjp Bsp And Congress – यूपी चुनाव 2022 : पांचवें चरण में किस पार्टी के सामने क्या चुनौती? चार बिंदुओं में समझें पूरा समीकरण
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इलेक्शन डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Sat, 26 Feb 2022 07:18 PM IST
सार
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, अयोध्या, चित्रकूट, बाराबंकी, प्रतापगढ़, कौशांबी, अमेठी, गोंडा, रायबरेली, बहराइच, श्रावस्ती और सुल्तानपुर में कल सुबह सात बजे से वोटिंग शुरू हो जाएगी। इन 12 जिलों की 61 सीटों पर इस बार 693 प्रत्याशी मैदान में हैं। सबसे ज्यादा प्रयागराज की प्रतापपुर सीट से 25 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
– फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ब्रज और बुंदेलखंड होते हुए उत्तर प्रदेश का चुनावी कारवां अब पूर्वांचल की तरफ बढ़ चुका है। कल यानी 27 फरवरी को सूबे के 12 जिलों की 61 सीटों पर चुनाव होने हैं।
यूं तो चुनावी मैदान में ताल ठोकने वाले प्रत्याशियों की संख्या 693 है, लेकिन अहम लड़ाई सिर्फ चार प्रमुख दलों के बीच ही है। जो इस चरण की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होगा उसके लिए लखनऊ में सत्ता की चाभी पाना आसना हो जाएगा। फिलहाल जीत और राजनीतिक दलों के बीच कुछ चुनौतियां हैं। बिना उन चुनौतियों के पार किए राजनीतिक दल सत्ता की चाभी तक नहीं पहुंच सकते।
पिछली बार भाजपा ने मार ली थी बाजी
जिन 61 सीटों पर चुनाव होने हैं, 2017 में उनमें से 47 पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। तीन सीट भाजपा की गठबंधन वाली अपना दल (सोनेलाल) के खाते में गई थी। पांच सीटों पर समाजवादी पार्टी और तीन पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। दो सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीती थीं। इसमें एक बाहुबाली कहे जाने वाले राजा भैया थे, तो दूसरी पर उनके ही करीबी माने जाने वाले विनोद सोनकर थे। एक सीट कांग्रेस के खाते में भी गई थी।
किस पार्टी के सामने क्या चुनौती?
1. भाजपा : 2017 के रिकॉर्ड को बरकरार रखना और 61 में से 47 सीटों पर फिर से जीत हासिल करना। भाजपा के सामने यहां आवारा पशुओं का मुद्दा विपक्ष उठा रही है। वहीं, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट बचाने की चुनौती भी भाजपा के सामने है। केशव सिराथू सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने समाजवादी पार्टी गठबंधन ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन और अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल को मैदान में उतारा है। सिराथू में पटेल वोटर्स की संख्या भी काफी अधिक है।
2. समाजवादी पार्टी : अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करना समाजवादी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है। भाजपा इन इलाकों सपा सरकार के दौर में अपराध बढ़ने का आरोप लगाकर अखिलेश को घेर रही है। 2012 में सपा को प्रयागराज मंडल की 28 में से 12 सीटें मिली थीं। 2017 में ये घटकर एक रह गई। इस खोए जनाधार को वापस पाना भी सपा के लिए बड़ी चुनौती है।
3. बहुजन समाज पार्टी : भाजपा-सपा को पीछे छोड़कर फिर से सीटों पर कब्जा जमाना। 2017 में जिन तीन सीटों पर जीत मिली थी, उसे फिर से कायम रखने की चुनौती भी है। बसपा के सामने यहां अपने जनाधार को वापस हासिल करने की बड़ी चुनौती भी है। इस इलाके के कई बड़े बसपा नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। पार्टी को बड़े चेहरा नहीं होने कारण भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
4. कांग्रेस : एक समय था जब प्रयागराज, अमेठी, रायबरेली जैसे जिले कांग्रेस के मजबूत गढ़ में शामिल थे। प्रयागराज के ही फूलपुर सीट से देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु चुनाव लड़ते थे। अब प्रयागराज में पूरी तरह से कांग्रेस साफ हो चुकी है। आसपास के जिलों में भी कोई खास जनाधार नहीं है। अमेठी और रायबरेली में जरूर थोड़ी मजबूत स्थिति रही है, लेकिन अब यहां भी भाजपा और सपा गठबंधन कड़ी चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने अपनी विरासत को बचाने की कड़ी चुनौती है।
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