पूरा जोर लगाने के बाद फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के पहले हफ्ते में अपने वितरण अधिकार की रकम बॉक्स ऑफिस पर न कमा पाने से संजय लीला भंसाली परेशान हैं। इंटरव्यू के लिए बिदकते रहने वाले भंसाली अब पत्रकारों को बुला बुलाकर इंटरव्यू दे रहे हैं, उनके साथ मुस्कुराते हुए तस्वीरें खिंचवा रहे हैं लेकिन इसी फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ का ट्रेलर रिलीज होने के दिन अपने पहले दो इंटरव्यू के दौरान संजय लीला भंसाली ने जो किया, आज बात उसकी करते हैं। महिला सशक्तिकरण और नारी सम्मान की बात करते करते वह उस दिन एकाएक एक महिला स्टाफ पर बुरी तरह भड़क गए थे और उस कर्मचारी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह भंसाली की कंपनी से मिले निर्देशों का ही पालन कर रही थी। ये पूरा वाक्या उस समय हुआ जब संजय लीला भंसाली ‘अमर उजाला’ के साथ अपने इंटरव्यू के बीच में थे। ये इंटरव्यू फिर पूरा नहीं हुआ। भंसाली अपनी इस हरकत पर हालांकि बाद में काफी शर्मिंदा भी हुए।
ये पूरा वाकया मुंबई के एक होटल का है। उस दिन देश भर से मीडिया का जमावड़ा हुआ था फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के ट्रेलर रिलीज को लेकर। सबने पहले थिएटर जाकर फिल्म का ट्रेलर देखा। संजय लीला भंसाली, आलिया भट्ट और अजय देवगन भी इस दौरान थिएटर पहुंचे। लोगों से मिले। खूब सेल्फियां खिंचवाई। उनके आभामंडल की सोशल मीडिया पर अगले हफ्ते भर खूब चर्चाएं होती रहीं। ट्रेलर भी भंसाली ने फिल्म के टीजर से बेहतर काटा था और लोगों ने टीजर से लेकर ट्रेलर तक उनके कहानी कहने के तरीके में आए बदलाव पर चर्चा भी की।
लेकिन उस दिन की असल चर्चा जो नहीं हो पाई वह रही संजय लीला भंसाली का उस दिन का रवैया। ट्रेलर देखने के बाद पत्रकारों को जुहू के जिस होटल में संजय लीला भंसाली और आलिया भट्ट के इंटरव्यू करने थे, भंसाली उस होटल पहुंचे तो इंटरव्यू को लेकर बिदकने लगे। वह इंटरव्यू के लिए बने सेटअप के पास पहुंचे तो वहां भी बार बार यही कहते रहे, ‘मुझसे ये क्यों करवा रहे हो। मैं कलाकार नहीं हूं। मैं ये सब नहीं कर सकता।’ लेकिन साथ ही वह मेकअपमैन से मेकअप भी करवाते रहे। सामने बैठी महिला पत्रकार से चुहल भी करते रहे। उनका पहला इंटरव्यू खत्म हुआ तो भंसाली ने कहा कि बस वह अब और इंटरव्यू नहीं करेंगे। उनके स्टाफ ने फिर उनकी चिरौरी शुरू की। भंसाली को इसमें मजा भी आता दिख रहा था। लेकिन, वह जताते ये भी जा रहे थे कि इंटरव्यू देने में उनका कोई फायदा नहीं है, वह तो बस एहसान कर रहे हैं।
अगला इंटरव्यू उनका मेरे साथ था। कैमरे ऑन हुए। मैंने ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया:।।’ का जिक्र करते हुए मैंने उनके सिनेमा में महिला किरदारों की मजबूती, कहानियों को चुनने की उनकी प्रक्रिया और हिंदी सिनेमा के उन निर्देशकों के बारे में बातें शुरू कीं, जिन्होंने उनके सिनेमा को प्रभावित किया। महबूब, कमाल अमरोही, बिमल रॉय की बातें हो रही थीं। वह नारी शक्ति की बात कर रहे थे। सिनेमा में महिला सशक्तिकरण को लेकर इन निर्देशकों से मिली सीख का बखान कर रहे थे। ‘सुजाता’ और ‘बंदिनी’ से होते हुए हम ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ तक आ चुके थे। भंसाली बता रहे थे, ‘ये फिल्म यूं लगता है कि जैसे गंगूबाई की रूह ने हमसे बनवाई है। मुझे कई बार इसका सेट पर इल्हाम भी हुआ। मुझे लगता है कि ये फिल्म मुझसे बनवाई गई है और ये फिल्म बने शायद इसीलिए ‘इंशाअल्लाह’ बंद भी हुई।’
इंटरव्यू शुरू होने से पहले संजय लीला भंसाली की कंपनी के स्टाफ और फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ का प्रचार कार्य संभाल रही कंपनी के बीच ये तय हुआ कि हर इंटरव्यू के लिए पहले से अधिकतम समय निर्धारित होगा और जैसे ही ये समय सीमा समाप्त होने वाली होगी, इंटरव्यू करने वाले के सामने रखे कैमरे के पास खड़ा स्टाफ इस बारे में पत्रकार को इशारा कर देगा। यह रीति पूरी दुनिया में चली आ रही है। हॉलीवुड में कैमरे के सामने खड़ा स्टाफ हाथ में पकड़े प्लेकार्ड को ऊपर कर देता है। मुंबई में यही काम प्रचार कार्य देखने वाली टीम ‘टाइम अप’ का हाथों से इशारा करके करती है। लेकिन, इस इंटरव्यू के दौरान जैसे ही ये इशारा प्रचार टीम में शामिल महिला स्टाफ ने किया, भंसाली भड़क गए। उनका कहना था कि उन्हें इंटरव्यू देने में मजा आ रहा था और उस महिला स्टाफ ने उनका सारा मूड खराब कर दिया। अब तक महिला सशक्तिकरण और नारी सम्मान की बातें करते रहे भंसाली का ये बदला हुआ रूप था। उन्होंने अपना माइक निकाल फेंका। और, उस महिला कर्मी पर चीखने चिल्लाने लगे जिसने इंटरव्यू का समय पूरा होने का इशारा किया।