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Serbia Also Accepted: Bgr 34 Effective In Preventing Diabetes, Discovery Of Indian Scientists Has Been Appreciated Globally – सर्बिया ने भी माना : मधुमेह रोकने में कारगर बीजीआर-34, भारतीय वैज्ञानिकों की खोज ने विश्व स्तर पर बटोरी सराहना

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अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Sat, 26 Feb 2022 06:53 AM IST

सार

बीजीआर-34 की खोज वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला सीमैप और एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कुछ ही समय पहले की थी, जिसे अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों से सराहना मिली है। बीते साल केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी बताया था कि मानकीकरण, सत्यापन और सुरक्षा के लिहाज से जांच के बाद इसे मरीजों के लिए उपलब्ध कराया है।

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कोरोना वैक्सीन के बाद अब भारतीय वैज्ञानिकों की एक और खोज ने विश्व स्तर पर सराहना बटोरी है। सर्बिया के वैज्ञानिकों ने भारतीय खोज बीजीआर-34 दवा पर हुए चिकित्सीय अध्ययन को प्राथमिकता दी है। इसके अनुसार मधुमेह पर नियंत्रण के अलावा यह दवा बीटा कोशिकाओं को मजबूती देती है। कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को बूस्ट करने से मधुमेह में तेजी से गिरावट आने लगती है। अध्ययन में एलोपै?थी के साथ आयुर्वेद के फार्मूले को कारगर माना है।

जानकारी के अनुसार पंजाब ?के चिटकारा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में 100 मधुमेह रोगियों पर अध्ययन किया जिसे सरेबियन जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल रिसर्च में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। मरीजों को बिना जानकारी के कुछ मरीजों को सीटाग्लिप्टिन और कुछ को बीजीआर-34 दी गई। इसके बाद चार, आठ और फिर 12 सप्ताह बाद मरीजों में आए बदलावों का विश्लेषण किया तो पता चला कि सीएसआईआर की यह दवा चार सप्ताह में बीमारी को नियंत्रण करती है।

बीजीआर-34 की खोज वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला सीमैप और एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कुछ ही समय पहले की थी, जिसे अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों से सराहना मिली है। बीते साल केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी बताया था कि मानकीकरण, सत्यापन और सुरक्षा के लिहाज से जांच के बाद इसे मरीजों के लिए उपलब्ध कराया है।

यूं घटता चला गया एचबीए1सी
अध्ययन में शोधकर्ताओं को पता चला है कि ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए1सी) की बेसलाइन वेल्यू 8.499 फीसदी थी लेकिन बीजीआर-34 लेने वाले मरीजों में चार सप्ताह बाद यह वेल्यु 8.061 फीसदी दर्ज की गई। इसके बाद आठवें और 12वें सप्ताह में जब मरीजों की स्थिति देखी तब यही वेल्यु क्त्रस्मश: 6.56 और 6.27 पाई गई। इसी तरह रेंडम शुगर जांच में मरीजों की शुगर औसतन 250 से कम होकर 114 एमजी/डीएल तक आई। वहीं खाली पेट शुगर 12 सप्ताह में 176 से नीचे 74 और भोजन के बाद 216 से कम होकर 87 एमजी/डीएल तक पहुंच गई।

महामारी में सबसे अधिक जोखिम भी
वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना महामारी में वायरस का अति जोखिम मधुमेह रोगियों में देखने को मिल रहा है। ऐसे में इन मरीजों से लगातार निगरानी और उपचार के साथ ही कोविड सतर्कता व्यवहार अपनाने की अपील भी की जा रही है। हाल ही में कोविड टीकाकरण के बाद भी ऐसे रोगियों में संक्त्रस्मण मोडरेट से गंभीर भी देखने को मिल रहा है। इसलिए पहले से बीमार मरीजों को सतर्कता बरतना बहुत जरूरी है।

विस्तार

कोरोना वैक्सीन के बाद अब भारतीय वैज्ञानिकों की एक और खोज ने विश्व स्तर पर सराहना बटोरी है। सर्बिया के वैज्ञानिकों ने भारतीय खोज बीजीआर-34 दवा पर हुए चिकित्सीय अध्ययन को प्राथमिकता दी है। इसके अनुसार मधुमेह पर नियंत्रण के अलावा यह दवा बीटा कोशिकाओं को मजबूती देती है। कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को बूस्ट करने से मधुमेह में तेजी से गिरावट आने लगती है। अध्ययन में एलोपै?थी के साथ आयुर्वेद के फार्मूले को कारगर माना है।

जानकारी के अनुसार पंजाब ?के चिटकारा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में 100 मधुमेह रोगियों पर अध्ययन किया जिसे सरेबियन जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल रिसर्च में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। मरीजों को बिना जानकारी के कुछ मरीजों को सीटाग्लिप्टिन और कुछ को बीजीआर-34 दी गई। इसके बाद चार, आठ और फिर 12 सप्ताह बाद मरीजों में आए बदलावों का विश्लेषण किया तो पता चला कि सीएसआईआर की यह दवा चार सप्ताह में बीमारी को नियंत्रण करती है।

बीजीआर-34 की खोज वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला सीमैप और एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कुछ ही समय पहले की थी, जिसे अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों से सराहना मिली है। बीते साल केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी बताया था कि मानकीकरण, सत्यापन और सुरक्षा के लिहाज से जांच के बाद इसे मरीजों के लिए उपलब्ध कराया है।

यूं घटता चला गया एचबीए1सी

अध्ययन में शोधकर्ताओं को पता चला है कि ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए1सी) की बेसलाइन वेल्यू 8.499 फीसदी थी लेकिन बीजीआर-34 लेने वाले मरीजों में चार सप्ताह बाद यह वेल्यु 8.061 फीसदी दर्ज की गई। इसके बाद आठवें और 12वें सप्ताह में जब मरीजों की स्थिति देखी तब यही वेल्यु क्त्रस्मश: 6.56 और 6.27 पाई गई। इसी तरह रेंडम शुगर जांच में मरीजों की शुगर औसतन 250 से कम होकर 114 एमजी/डीएल तक आई। वहीं खाली पेट शुगर 12 सप्ताह में 176 से नीचे 74 और भोजन के बाद 216 से कम होकर 87 एमजी/डीएल तक पहुंच गई।

महामारी में सबसे अधिक जोखिम भी

वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना महामारी में वायरस का अति जोखिम मधुमेह रोगियों में देखने को मिल रहा है। ऐसे में इन मरीजों से लगातार निगरानी और उपचार के साथ ही कोविड सतर्कता व्यवहार अपनाने की अपील भी की जा रही है। हाल ही में कोविड टीकाकरण के बाद भी ऐसे रोगियों में संक्त्रस्मण मोडरेट से गंभीर भी देखने को मिल रहा है। इसलिए पहले से बीमार मरीजों को सतर्कता बरतना बहुत जरूरी है।

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