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Supreme Court: After Acquittal In Cow Smuggling Case, Confiscation Of Vehicle Violates Right To Property – सुप्रीम कोर्ट : गोतस्करी मामले में बरी होने के बाद, वाहन जब्त करना संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन

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राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली। 
Published by: योगेश साहू
Updated Sat, 05 Mar 2022 04:41 AM IST

सार

शीर्ष कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें एक शख्स ने उसके ट्रक को जब्त किए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। उसकी इस याचिका को  हाईकोर्ट ने एमपी गोवध निषेध अधिनियम, 2004 और एमपी गोवंश वध प्रतिष्ठा नियम, 2012 के नियम- 5 के तहत खारिज कर दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पशु तस्करी में किसी ट्रक मालिक को आपराधिक मामले से बरी किए जाने के बाद उसके वाहन को जब्त करना अनुच्छेद-300 ए के तहत व्यक्ति को मिले संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, ऐसे मामले में जहां अपराधी या आरोपी को बरी कर दिया जाता है तो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जब्ती की कार्यवाही का निर्णय लेते वक्त फैसले पर गौर किया जाना चाहिए।

पीठ ने इसके साथ ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें अब्दुल वहाब द्वारा उसके ट्रक को जब्त करने के खिलाफ दायर एक याचिका को एमपी गोवध निषेध अधिनियम, 2004 और एमपी गोवंश वध प्रतिष्ठा नियम, 2012 के नियम- 5 के तहत खारिज कर दिया था।

उक्त मामले में 17 गायों से लदे अपीलकर्ता के ट्रक को रोक लिया गया और वाहन के चालक सुरेंद्र और एक अन्य व्यक्ति नजीर को गिरफ्तार कर लिया गया था। निचली अदालत ने सभी आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि गायों को वध के लिए ले जाया जा रहा था। हालांकि जिला मजिस्ट्रेट ने बाद में ट्रक को जब्त करने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने डीएम के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ट्रक को केवल आपराधिक कार्यवाही के कारण जब्त किया गया था। ऐसे में आरोपियों के बरी होने के बाद वाहन को राज्य द्वारा जब्त नहीं किया जा सकता है।

डीएम के पास फैसले लेने की शक्ति लेकिन तथ्यों पर विचार भी जरूरी
पीठ ने कहा, जिला मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और जब्ती का आदेश पारित करने की शक्ति है लेकिन बरी होने के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में बरी करने का आदेश पारित किया गया था क्योंकि अभियुक्तों के खिलाफ सबूत गायब थे। आपराधिक मामले में बरी होने पर अपीलकर्ता के ट्रक को जब्त करना, उसे संपत्ति को मनमाने ढंग से वंचित करना होगा और संविधान के अनुच्छेद-300ए (संपत्ति का अधिकार) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले अधिकार का उल्लंघन है। 

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पशु तस्करी में किसी ट्रक मालिक को आपराधिक मामले से बरी किए जाने के बाद उसके वाहन को जब्त करना अनुच्छेद-300 ए के तहत व्यक्ति को मिले संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, ऐसे मामले में जहां अपराधी या आरोपी को बरी कर दिया जाता है तो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जब्ती की कार्यवाही का निर्णय लेते वक्त फैसले पर गौर किया जाना चाहिए।

पीठ ने इसके साथ ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें अब्दुल वहाब द्वारा उसके ट्रक को जब्त करने के खिलाफ दायर एक याचिका को एमपी गोवध निषेध अधिनियम, 2004 और एमपी गोवंश वध प्रतिष्ठा नियम, 2012 के नियम- 5 के तहत खारिज कर दिया था।

उक्त मामले में 17 गायों से लदे अपीलकर्ता के ट्रक को रोक लिया गया और वाहन के चालक सुरेंद्र और एक अन्य व्यक्ति नजीर को गिरफ्तार कर लिया गया था। निचली अदालत ने सभी आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि गायों को वध के लिए ले जाया जा रहा था। हालांकि जिला मजिस्ट्रेट ने बाद में ट्रक को जब्त करने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने डीएम के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ट्रक को केवल आपराधिक कार्यवाही के कारण जब्त किया गया था। ऐसे में आरोपियों के बरी होने के बाद वाहन को राज्य द्वारा जब्त नहीं किया जा सकता है।

डीएम के पास फैसले लेने की शक्ति लेकिन तथ्यों पर विचार भी जरूरी

पीठ ने कहा, जिला मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और जब्ती का आदेश पारित करने की शक्ति है लेकिन बरी होने के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में बरी करने का आदेश पारित किया गया था क्योंकि अभियुक्तों के खिलाफ सबूत गायब थे। आपराधिक मामले में बरी होने पर अपीलकर्ता के ट्रक को जब्त करना, उसे संपत्ति को मनमाने ढंग से वंचित करना होगा और संविधान के अनुच्छेद-300ए (संपत्ति का अधिकार) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले अधिकार का उल्लंघन है। 

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